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रविवार, दिसंबर 10, 2023

जीवन के उच्च मूल्यों को दर्शाती 'खाली भरे हाथ'

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समीक्षा खाली भरे हाथ। मूल लेखक : आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र I

अनुवाद राम लाल वर्मा राही I समीक्षक : रौशन जसवाल

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खाली भरे हाथ आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र की हिन्दी बोध कथाओं का पहाड़ी (क्योंथली) अनुवाद है। अनुवाद रामलाल वर्मा राही ने किया है। आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र का साहित्य जगत में महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर है। उनका साहित्य जगत में अविस्मरणीय योगदान रहा है।

 खाली मरे हाथ साठ पृष्ठों की पुस्तक है जिसमें 76 बोध कथाएं संकलित की गई है। पुस्तक का प्राकथन डॉ. प्रेमलाल गौतम जी ने लिखा है। पुस्तक शीर्षक 'खाली भरे हाथ को लेकर वे पाठको की जिज्ञासा को पूर्ण करते हुए संस्कृत का श्लोक का उदाहरण देते है :-

 नमन्ति फलिनों वृक्षाः नमन्ति सज्जनाजनाः ।

शुष्कवृक्षाश्च मुर्खाश्च न नमन्ति कदाचन ।।

 अर्थात ज्ञानवान व्यक्ति फलों से लदे झुके वृक्षों की भांति विनम्र और सहृदय होते है और ज्ञानशून्य शुष्क नम्रता रहित खाली होते है।

 जिऊवे री गल में लेखक अपने पुस्तक खाली भरे हाथ। बोध कथायें। हृदय उद्‌गार व्यक्त करते हुए इस अनुवाद की आवश्यकता पर पर लिखते है कि हिन्दी में इन बोध कथाओं को पढ़ने के बाद उन्होंने महसूस किया कि इन्हें अपनी बोली में अनुदित करने से बच्चों को संदेश और प्रेरणा मिलेगा। इसके माध्यम से वे अभिप्रेरित भी होंगे। जिऊवे री गल में सभी सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त करते है खाली मरे हाथ की में बोध कथाओं की शुरुआत दुनिया री सैल बोध कथा से होती है जिसमें बचपन और जवानी का मार्मिक वार्तालाप है। इस बोध कथा का मूल सन्देश है कि जीवन यात्रा में अनेक पड़ाव आते है। रास्ते में आने वाली कठिनाईयों का सामना करते हुए समाज के प्रति ईमानदारी का भाव रहना आवश्यक है।

रुकावट बोध कथा भी जीवन यात्रा को सम्बोधित करती है । इस कथा में जीवन में करुणा, दया के एक दूसरे की मदद करने को विषय बना सारगर्भित सन्देश दिया गया कर। इस विषय को ठींड और जवाणस बोधकथा में भी लिया गया जो वास्तव में प्रेरक और प्रभावशाली है स्त्री पुरुषों जीवन सम्बंधों पर खाली भरे हाथ पुस्तक में जवाणसो री तमन्ना, जवाणसा रा जीऊ, जवाणसा री चुनरी, एस्स जमाने री प्रेमिका, जवाणसो रा प्यार, बोध कथाएं है। ये बोध सम्बंधों में ईमानदारी समाज, परिवार और प्रत्येक कार्य के प्रति स्नेह, आत्मीय सम्बंधों और कार्यशील रहने का सन्देश देती है। माछो री माटी, माछो रा आपणा, माछो री कमजोरी, ठींडो री मजबूरी कुछ ऐसी बोध कथाएं है जो मनुष्य मात्र को कर्तव्य बोध का अहसास के पात्र है। हमारे खान पान में मांसाहार और शाकाहार में से श्रेष्ठ आधार को व्यक्त करती बोध कथाएं मांसाहारी रा कारण और 'शाखाहारी रा जोर प्रेरक बोध बोधकथाए  है तो आहार के चयन उपयोगिता पर प्रकाश डालती है। पापी सरीर बोध कथा में दशहरा के माध्यम बुराई के समूल नाश औ स्वस्थ जीवन यापन पर जोर दिया। गया है।

शर्मी रा पर्दा बोध कथा में प्रातःकाल और रात के वार्तालाप के माध्यम से सुबह जल्दी जागने के महत्त्व को दर्शाया गया जो वास्तव में तार्कित और युक्ति संगत है। कामणा बोधकथा में भी दीपक के दूसरे को प्रकाश देने के माध्यम से जीवन में लोक कल्याण और जन सेवा में लगाने का सन्देश दिया गया है।

 शीर्षक बोधकथा खाली भरे हाथ में छोटे बच्चे और उम्र दराज दादा का फल युक्त और फल रहित वृक्षों के बारे जिज्ञासा पूर्ण वार्तालाप है। फलयुक्त वृक्ष सदा ही झुके रहते है जबकि फल रहित वृक्ष तनकर कर सीधे खड़े होते है। वैसे ही विनम्र व्यक्ति फलयुक्त वृक्षों की भांति होता है। इसी तरह काग सनैहा में बच्चा माँ से पूछता है कि कोऊआ हर रोज सभी घरों में उड़ता हुआ कांव कांव क्यों करता रहता है। माँ बच्चे को कौए की कांव कांव को आहार खान पान से जोड़ते हुए आहार चयन के महत्त्व के बारे में समझाती है कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं चाहिये। खाली भरे हाथ में आम्मा रा सनेहा बोधकथा माँ की पूजनीयता के बारे में सन्देश देती है। माँ की महत्त्वपूर्णता ओर उसके होने का अहसास जीवन में प्रसन्नताओं का संचार करता है। शिक्षा देने वाला त्याग, पढ़ा लिखा मूर्ख, सुअरों री आदत, बियूंत, नजरा री कमी, रोटी अरो जुद्ध और कमजोरी ई मौत इस पुस्तक की प्रेरक और अभिप्रेरित करने वाले बोध कथाओं में प्रमुख है। रोटी रो जुद्ध बोधकथा हर समय में प्रासंगिक और समसामयिक बोध

 कथा है। मींस (प्रतिस्पर्धा) बोध कथा में पतंगों के माध्यम से बेहद ही मार्मिक और सार्थक सन्देश दिया है कि जीवन का मूल सन्देश एक दूसरे से ईर्षया करना नहीं अपितु सहयोग, समरसता और मदद करना है। खाली भरे हाथ में अनुदित सभी बोध कथाए जीवन दर्शन का परिचायक है। 

पुस्तक की विशेषता है कि कठिन पहाड़ी शब्दों के पाद टिप्पणी में अर्थ दिए गए है जो पाठकों को
कठिन पहाड़ी शब्दों को समझने में सहायता करते है। पहाड़ी में अनुवाद बेहद कम हो रहा है लेकिन राम लाल वर्मा राही का ये प्रयास श्लाघनीय है। पुस्तक पठनीय
, संग्रहणीय तो है ही साथ ही बच्चों के चरित्र निर्माण और दृष्टिकोण विकास में सहायक है।

पुस्तक की महता देखखते ही हिमाचल के राज्यपाल महामहिम शिव प्रताप शुक्ल जी ने राजभवन में विमोचन किया था। बेशक पुस्तक 60 पृष्ठों की छोटी आकार में है परन्तु सभी बोध कथाएं अभिप्रेरित और जीवन को स्वच्छ उच्च मूल्य देने वाली बोध कथाएँ है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि आचार्य जगदीश चंद्र मित्र की हिन्दी बोध कथाओं को पहाड़ी (क्योंथली) में अनुदित करने में राम लाल बर्मा राही ने ईमानदारी से मेहनत की है जिसके लिए वे बधाई के पात्र है।


GIRIRAJ  15-21 NOV. 2023


शनिवार, नवंबर 04, 2023

रेडियो भूली बिसरी स्मृतियां

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ये आकाशवाणी है..........।  

रेडियो पर ये उद्‌घोषणा सुनते ही एक अजब

अनुभूति का आभास होता है।  जैसे आकाश से वाणी सुनाई दे रही हो। आकाशवाणी से ये  शब्द सुनते ही रोमान्‍च  हो उठता है अनेक जिज्ञासाएं कौंध जाती है।  छोटे से उपकरण रेडियों के माध्यम संवाद, समाचार संगीत और भी बहुत कुछ का प्रसारण हमेशा ही उद्वेलित करता रहा है। कैसे होते है वे लोग जो आवाज के माध्यम से हमारे दिलों में कहीं गहरे उतर जाते है और हृदय में जगह बना लेते हैं।

भारत में आकाशवाणी की स्थापना की बात करें तो 23 जुलाई 1997 को यात्रा भारतीय प्रसारण सेवा कलकता और मुब्‍बई से आरम्भ हुई। 1936 में ऑल इंडिया रेडियों तो 1957 में आकाशवाणी हो गया। मैं याद कर रहा आकाशवाणी शिमला को जिससे मेरा जुड़ाव एक लम्बे समय तक केजुअल उद्‌घोषक और केजुअल सामाचार वाचक के रूप में रहा। उससे पूर्व युववाणी कार्यक्रम के कम्‍पेयरर  के रूप में सम्बंध रहा । आकाशवाणी
शिमला की शुरूआत
16 जून 1955 को हुई । ज्यों ज्‍यों यादों के पन्ने पलटता हूं तो बाल्यकाल की कुछ धुंधली स्मृतियां सामने आती है। परिवार में रेडियों होना सम्मान की बात होती थी । उस समय रेडियो रखने के लिए 
लाईसेंस लेना पड़ता था और डाकघर में सालना फीस जमा करवानी होती थी । 

रेडियो प्रतिदिन विशेष कर प्रातःकाल और शाम को अवश्य सुना जाता ।  सुबह सुबह धार्मिक भजनों के लिए तो शाम समाचारों के लिए । याद आता है कि मेरे बाल्‍य काल मे  प्रादेशिक समाचारों में राम कुमार काले की

प्रमुख आवाज थी। उनकी बुलन्द आवाज और उच्चारण आज भी श्रोता याद करते है। उनको सुनते तो जिज्ञासा होती कि  काले साहब कैसे होंगे ।   ज़रूर रोबिला और लम्बी हटीकट्टी कद काठी के रहे होंगे। बहुत बाद में जब मेरा आकाशवाणी आना जाना हुआ तो पता चला कि वे बेहद सहृदय और साधारण कदकाठी के थे। मां बताती थी कि अपने बाल्यकाल में अकसर मैं उनकी  नकल कर समाचार पढ़ने का प्रयास किया करता था ।

स्‍थान परिवर्तन हुआ। 1977 में ठियोग से ढली शिमला आ गए और तो दसवीं कक्षा के लिए मशोबरा गए। उस समय एक कार्यक्रम आता था विद्यार्थियों के लिए। आकाशवाणी की टीम स्कूलों में जाकर रिकार्डिंग किया करती थी। ये 1979-80 की बात है हमारे स्कूल में भी आकाशवाणी की टीम रिकॉर्डिंग के लिए आई थी। कई बच्चों की स्वर परीक्षा प्रस्तुति कम्पेयरर  ली गई परन्तु टीम की प्रभारी नलिनी कपूर को कोई आवाज पसंद ही नहीं आई। विद्यालय के एनडीएसआई सर जोगेन्‍द्र  धोलटा ने मेरा नाम सुझाया तो कम्पेयरर के रूप में मेरा चयन हो गया और मेरे साथ चयनित हुई रीता श्रीवास्तव नाम की सहपाठी । सम्भवतः शनिवार साढ़े 12 बजे ये कार्यक्रम प्रसारित हुआ।  विद्यालय में ही रेडियो का प्रबंध हुआ। पहली बार आकाशवाणी के माध्यम से अपनी आवाज़ को सुना । सच मानिए बेहद रौमांच और गौरव के क्षण थे मेरे लिए। दसवीं के बाद संजौली कालेज से बीए किया और फिर विश्वाविद्यालय पहुंच गए। इस मध्य युववाणी कार्यक्रम के प्रस्तुत करने का अवसर मिला। युववाणी के बाद उद्‌घोषक के लिए चयन हुआ तो प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित  हुआ। दीपक भण्डारी, बी.आर. मैहता, अच्छर सिंह परमार, शान्ता वालिया उस समय उदघोषणाओं में प्रमुख नाम थे। प्रशिक्षण के दौरान इन सभी से प्रत्यक्ष मुलाकात हो पाई। मैं दीपक भण्डारी से अधिक प्रभावित रहा। प्रशिक्षण के बाद हमारी उदघोषणाओं के लिए डयूटी लगनी आरम्भ हो गई। प्राय: शनिवार की रात और रविवार की सुबह की सभा में ड्यूटी लगती।

उद‌घोषकों की अगर बात करें तो दीपक भण्डारी एक ऐसा नाम है जिन्होने एक लम्बे समय तक आकाशवाणी शिमला में उ‌दघोषक के पद पर कार्य किया उनका व्यक्तित्व बेहद आकर्षक था।  मैंने उनको सदा ही कुर्ता, चुड़ीदार पायजामा और जैकेट में ही देखा । ये परिधान उन पर  बेहद भाता भी था।  भंडारी जी का व्‍यवहार बेहद ही मृदुभाषी और सरल था वे उदघोषकों को सदा ही  प्रोत्साहित करते और उच्चारण पर ज्यादा मेहनत करने पर बल देते। केजुअल उद्‌घोषक सदैव ही उनसे प्रसारण की बारीकियां सीखते थे। वास्तव में दीपक भण्डारी प्रेरक व्‍यक्तिव थे । 

अच्‍छर सिंह परमार उदघोषक होने के साथ साथ संगीत प्रेमी और गायन भी थे। उनका नए कलाकारों से हमेशा ही सौहार्द पूर्ण सम्‍बध रहे है नए कलाकार परमार से प्रसारण की बारिकीयां सीखते रहे है। परमार जी  गायन में विशेष रुचि रखते थे। उनकी गायन जोड़ी ज्‍वाला प्रसाद शर्मा के साथ प्रसिद्ध थी। उनका  गाया गीत  पैहर सबैला री नी गई री बहुए अड़ीए  दिन चड़ने जो आया  प्रसिद्ध है जो आज भी भी बहुत शौक से सुना और गाया जाता है। अच्‍छर  सिंह परमार मन्डयाली कार्यक्रम में भी बेहद रुचि रखते थे। 

बी.आर.मैहता की भारी और दमदार आवाज़  श्रोताओं को बेहद प्रभावित करती थी। श्रोता उनसे आकर्षित रहा करते थे। नाटकों में भी विशेष रूचि रहती थी । बी. आर.मेहता हमेशा ही आवाज़  के मोडूलेशन पर ज्यादा जोर देते थे। उनका मानना था कि इस माध्यम से श्रोताओं से असरदार संवाद स्थापित हो पाता है।  उस समय नियमित उदघोषकों के अलावा  शैल पंडित,  दीपक शर्मा, जवाहर कौल, नरेंद्र कंवर केजुअल उदघोषक हुआ करते थे।  वर्तमान में डॉ. हुकुम शर्मा और सपना ठाकुार नियमित उदघोषक के रूप में कार्यरत है जो श्रोताओं को अपनी प्रस्‍तुतियों से प्रभावित कर रहे हैं।  

आकाशवाणी पारिश्रमिक भी देती थी।  सांयकालीन ड्यूटी के दौरान कार्यक्रम गीत पहाड़ा रे प्रस्तुत करने में मुझे आनन्द आता था। फरमाईशी कार्यक्रम था तो श्रोताओं की फरमाइश पर पहाड़ी गीत प्रसारित किए जाते । अपने मित्रों के नाम भी इसमें अक्सर ले लिया करता था। कुछ समय बाद दोपहर की सभा संचालित करने लगा। सैनिकों के लिए कार्यक्रम में फिल्मी गीत बजाए जाते। रविवार को सैनिकों के लिए फरमाईशी कार्यक्रम होता था। इस कार्यक्रम को प्रसारित करने में मुझे आनन्‍द की अनुभूति होती। 

आकाशवाणी शिमला के प्रादेशिक समाचार सबसे ज्यादा सुना जाने वाला कार्यक्रम है।  समाचार एकांश में जी.सी.पठानिया, बी.के.ठुकराल सम्पादन कक्ष में कार्यरत थे जबकि  हंसा गौतम निममित समाचार वाचक थी। कुछ समय बाद शान्ता वालिया ने भी नियमित समाचार वाचन में नियुक्ति पाई थी।

1990-1991 के आसपास केजुअल प्रादेशिक समाचार वाचक के रूप में मेरा चयन हो ग‌या । प्रशिक्षण कार्यक्रम राष्ट्रीय समाचार वाचक कृष्ण कुमार भार्गव के सानिध्य में पूरा किया। उस समय समाचार एकांश में हंसा गौतम और शांता वालिया प्रमुख आवाज़ थी। हँसा गौतम आकर्षक व्यक्तित्व और शानदार आवाज की मालिक थी। उनका वाचन हमेशा दोष रहित रहता था। वे नए केजुअल समाचार वाचकों को उच्चारण पर ध्यान देने के लिए सदैव प्रेरित करती थी।  हंसा गौतम का मृदु भाषी होना सभी को बेहद प्रभावित करता
था।  शांता वालिया आकर्षक कदकाठी की थी और उनको हमेशा साड़ी में ही देखा । उनका रोबिले अंदाज में चलना उनके व्‍यक्तिव को शानदार बनाता था। वे नए कलाकारों को हमेशा ही प्रोत्‍साहित करती थी । केजुअल समाचार वाचकों में दीपक शर्मा जवाहर कौल अनुराग पराशर

भूपेंद्र शर्मा, डीडी. शर्मा, मुकेश राजपूत, रोशन जसवाल और दो एक महिला वाचक भी उस समय सक्रिय थे। जबकि वर्तमान समय में राकेश शर्मा,प्रभा शर्मा और राजकुमारी शर्मा सक्रिय है जिन्‍होने अपनी पहचान बनाई है। समाचारों में प्रारम्भ में पांच मिनट का बुलेटिन दिया जाता था। बाद में मुख्य बुलेटिन शाम सात बज कर 50 मिनट वाला पढ़ने को दिया जाने लगा। जिसे लम्बे समय तक निभाया। समाचार वाचन ने उस समय मुझे एक अलग पहचान दी  । समाचार वाचन की मेरी यात्रा फरवरी 2010 तक चली उसके बाद व्यक्तिगत कारणों से मैं इसे नियमित नहीं कर पाया।

आकाशवाणी शिमला को जब जब याद करता हूँ तो बहुत सी आवाजें और वरिष्‍ठ सहयोगी  याद आते है जिन्‍होने श्रोताओं के मानस पटल  पर अपनी आवाज के दम पर अपना नाम बनाया । कृष्‍ण कालिया का नाम उन लोगों में लिया जाता है जिन्‍होने आकाशवाणी शिमला की स्‍थापना से कार्य किया। वे शिव शरण सिंह ठाकुर को याद करते हुए बताते है कि उनको आकाशवाणी में 
लाने का श्रेय ठाकुर जी को जाता है। कृष्‍ण कालिया अक्‍सर पुराने समय को याद करते थे । 
इन्‍ही लोगों में शान्‍ति स्‍वरूप गौतम का नाम भी अदब के साथ लिया जाता है। लता वर्मा बच्‍चों के कार्यक्रम प्रस्‍तुत किया करती थी कला बोबो और लता बोबो को आज भी श्रोता याद करते है।

प्रादेशिक समाचार के बाद सुने जाने वाले कार्यक्रम विभिन्‍न बोलियों के कार्यक्रम थे। बोलियों के कार्यक्रमों में मुझे शांति स्‍वरूप गौतम, कृष्‍ण कालिया, अमर सिंह चौहान, अश्विनी गर्ग, ओंकार लाल भारद्वाज चंगर याद आते है।  ओंकार लाल भारद्वाज रिड़कू राम के नाम से श्रोताओं में प्रसिद्ध थे। चंगर उनका लेखकीय नाम था वे कांगड़ी बोली में कविताएं गीत नाटक  लिखा करते थे। 

आकाशवाणी शिमला में तैयार किए जाने वाले नाटकों ने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर प्रशंसा प्राप्‍त की है। नाटकों और बच्चों के कार्यक्रम में मुझे अनूप महाजन, राज कुमार शर्मा, गुरमीत रामल मीत, इन्द्रजीत दुग्गल, देवेन्द्र महेन्द्रु, रविश्री बाला  स्मरण होते है जो हमेशा ही प्रेरक रहे और सीखने सीखाने की परम्परा के पक्षधर रहे।

इस केन्‍द्र ने संगीत के क्षेत्र  में देश में विशेष सम्‍मान हासिल किया है। संगीत के कार्यक्रमों में एस शशि, बी.डी. काले, भीमसेन शर्मा, सोमदत बटु, रामस्वरूप शांडिल, जीत राम, शिवशरण ठाकुर, एस. एस. एस.ठाकुर, सुन्दर लाल गन्धर्व, लेख राम गन्धर्व, श्रीराम शर्मा, शंकर लाल शर्मा, कति राम के एल सहगल  त्रिलोक सिंह ज्वाला प्रसाद याद आते है जो श्रोताओं के हृदय में आज भी उपस्थित है। कला ठाकुर  लता वर्मा हीरा
नेगी
, कृष्ण सिंह ठाकुर, रोशनी देवी. कुछ ऐसे नाम है जो संगीत,प्रसारण, प्रोग्राम प्रोडक्शन आदि अनेक कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल हो पाए थे ।

आपका पत्र मिला, कृषि जगत, बाल गोपाल, वनिता मण्डल, शिखरों के आसपास, अमरवाणी, सैलानियों के लिए, धारा रे गीत, और बोलियों के कार्यक्रम ज्‍यादा सुने जाने वाले कार्यक्रमों में रहे है। कला ठाकुर और हीरा नेगी ने विभिन्‍न कार्यक्रमों में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभार्इ। कला ठाकुर जानकी के नाम से कार्यक्रम प्रस्‍तुत करती थी उनके फैन उनसे मिलने आते तो जानकी को ही पूछा करते थे। अनेक ऐसे कलाकार है जो अपनी योग्‍यता के कारण हमेशा स्‍मृति पटल पर अंकित है।

आकाशवाणी शिमला को जब भी याद करता हूँ तो ड्यूटी रूम, लेखा संकाय, कंटीन और गेस्‍ट रूम याद आते । गेस्‍ट रूम में उदघोषणाओं की क्रास डयूटी के दौरान सोया

हूं । ड्यूटी रूम में ज्ञान जी, अभय जी और निराला जी याद आते है। अभय जी पढ़ाई में बेहद मेहनती थे। मित्रवत स्वभाव के अभय अक्सर केजुअल को पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी देते और प्रेरित करते। प्राय उन्हे प्रतियोगी पुस्तकों के साथ देखता था । बाद में उनका चयन प्रशासनिक सेवाओं में हो गया था। लेखा संकाय से चैक मिला करते थे जो अब भी मुझे उद्वेलित करते हैं। लेखा संकाय में सुशील जी स्मरण हो आते हैं। खैर ..…... ।मुझे मालूम है कि कुछ नाम अवश्‍य ही छूट गए होंगे। पाठक इसे अन्‍यथा नहीं लेंगे और इसकी जानकारी मुझे दे कर प्रोत्‍साहित करेंगे ।

एफएम के आने से प्रायमरी प्रसारण का सुना जाना जरूर कम हुआ है लेकिन प्रायमरी चैनल के प्रसारणों में लोग आज भी रूचि रखते है।

मैं आज भी गांव की ऊंची पहाड़ी पर से रेडियो पर बज रहा पहाड़ी गीतों के कार्यक्रम में  गीत सुनता हूं,  तेरी परांउठी लागा रेडिया ......  और मैं सदा ही आश्‍वसत हूं कि रेडियों जनमानस की आवाज़ रहेगा और एक  आकर्षण भी ।

 

* रौशन जसवाल विक्षिप्‍त



शनिवार, अक्तूबर 21, 2023

देवता झूठ नहीं बोलता

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 देवता झूठ नहीं बोलता

- ------ ----- ---- ---    बात निकलेगी तो दूर तलक जाऐगी। अब शीर्षक ही लीक से हट कर हो तो चर्चा होना  

स्वाभाविक है। शीर्षक है देवता झूठ नहीं बोलता, मनोज चौहान का लघुकथा संग्रह। देवता झूठ नहीं बोलता मनोज चौहान की दूसरी पुस्तक है जो अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित हुई है। 
मनोज चौहान पहली पुस्तक काव्य संग्रह के रूप में 'पत्थर तोड़ती औरत' 2017 में अंतिका प्रकाशन के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंची थी। इस काव्य संग्रह ने साहित्य जगत, खास कर युवा रचनाकारों के मध्य सार्थक अस्थिति दर्ज करवाई थी।
फिलहाल हम बात कर रहे है लघुकथा संग्रह 'देवता झूठ नहीं बोलता 'की। मित्रवत सम्बंधों के चलते मनोज चौहान ने ये लघुकथा संग्रह डाक द्वारा मुझ तक पहुंचाया। पुस्तक का शीर्षक, और गेटअप देख कर मैं पुस्तक के प्रति आकर्षित तो हुआ साथ ही जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई। प्रारम्भ में कुछ लघुकथाओं पर नज़र डाली, अच्छी लगी तो सोचा कुछ चुनी हुई लघुकथाओं को अपने Youtube चैनल के लिए रिकार्ड कर पाठकों के लिए प्रस्तुत करूंगा।  परन्तु ज्यो ज्यो पुस्तक में आगे बढ़ता गया तो निर्णय में परिवर्तन हुआ और संग्रह की सभी लघुकथाओं को 40 ऐपिसोड में रिकार्ड कर लिया। सच मानिए लघुकथाओं को पढ़ते और रिकार्ड करते बेहद आनन्द आया।
देवता 'झूठ नहीं बोलता' की लघुकथाएं हमारी आस पास की घटनाओं का एक गंम्भीर दस्तावेज है । लघुकथाओं के पात्र और केन्द्रीय विषय लगता है जैसे वे हमारे बेहद समीप है और पात्र घटनाये जैसे हमारे सामने सजीव हो। 
संग्रह से गुजरते हुए पाया कि लघुकथाएं  सामाजिक असमानता, अंध विश्वास, जातिय वर्ग भेद, जीवन स्तर की असमानता, धार्मिक असमानता अवसरवादिता, राजनैतिक गतिरोध, ग्रामिण संकीर्णता जीवन परम्पराओं और संस्कृति को समेटे हुए है। देवता झूठ नहीं बोलता लघुकथा संग्रह में मुझे विविधता का आभास हुआ। कभी कभी कहीं कहीं केन्द्रीय विषय की पुनारावृति भी महसूस हुई।
इन्ही बिन्दुओं के आधार पर ही मैं संग्रह पर कुछ बोलने लिखने में सक्षम हो पाया।
देवता झूठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं प्रथम वर्ग यानी अँध विश्वास, जातिय भेदभाव, सामाजिक विभिन्न, असमानताओं पर आधारित है। व्यंग्य बाण, भीतर का डर, बहुत देर हो गई, वशीकरण, संकीर्ण सोच, आत्मबोध, लोकलाज और शीर्षक लघुकथा · देवता झूठ नहीं बोलता' इसी वर्ग में आती है शीर्षक लघुकथा 'देवता झूठ नहीं बोलता' हमारे ग्रामिण परिवेश की जातिय गूढ़ता का परिचय देती है। नाम के साथ सरनेम न होना ग्रामिण क्षेत्रों में बहुधा समस्या उत्पन्न  कर देता है।  शीर्षक लघुकथा में प्रयुक्त संवाद " म्हारा देवता नहीं मानता' ग्रामिण क्षेत्रों में धार्मिक और जातिय असमानता और भेदभाव को दर्शाता है। 'बकरा लघुकथा में लेखक मिस्त्री जमनू के माध्यम से इसी तरह के वर्गभेद का सुन्दरता और सरल शब्दों में उल्लेख करता है। दण्ड स्वरूप 'बकरा' देना ये प्रथा आज भी बहुधा देखने को मिल जाती है। मुझे लगता है सामाजिक संरचना की तरफ संकेत करती अन्य विभिन्न लघुकथाए पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करेंगी।
धार्मिक और जातिय भेदभाव, असमानता और सर्कार्ण सोच पर आधारित लघु‌कथाएं,  वो तो पेट में है, मौका परस्त, संकीर्ण सोच, डाका, आत्म बोध, कुछ ऐसी रचनाएं है जो पाठकों को  अवश्य उद्वेलित करेंगी।
द्वितीय श्रेणी में अवसरवादिता, राजनैतिक प्रभाव, और महत्वांकाक्षा जैसे विषयों को समेटे अनेक सारमार्गित और तार्किक तथा प्रभावशाली लघुकथाएं है। 'अपने लोग'
दोगलापन, सरकारी राशन, नवीनीकरण, संगत में रंगत, कीड़े मकोड़े, सहपाठी, और फोन कट गया, जुगाड,  पर्दे, साँठ गाँठ, नकली, नोटबंदी, बीच का रास्ता, असली चेहरे कुछ ऐसी  लघुकथाए हैं जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करेंगी, ऐसा मेरा मानना है।  पर्दा लघुकथा का विषय इसी ताने बाने में बुना है। इस श्रेणी में मुझे पांच सौ का नोट, औचक निरीक्षण, संघर्ष की राह,  सहपाठी लघुकथाए व्यक्तिरूप से प्रभावित करती है।
जीवन परम्पराओं जीवन संस्कृति और लिंग भेद जैसे विषयों पर आधारित लघुकथाओं में अहसास, मातृत्व, लिहाफ, गुड्डे को सॉरी बोलो, बदलाव, अपने हिस्से का संघर्ष, संवेदनशीलता, बायोडाटा, पापा आप कब आओगे, उधारी नहीं होगी, भोलापन आदि लघुकथाएं पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगी और पाठकीय रुचि में वृद्धि करेगी ऐसी आशा है।
लघु कथा संग्रह देवता झूठ नहीं बोलता' से गुजरते हुए मुझे कुछ लघुकथाये मान की लड़ाई, कोर्ट केस का उल्लेख करती मिली । इस प्रकार की लघुकथाए मुझे सत्यता के बहुत आस पास लगी जो क्षेत्र विशेष की राजनैतिक घटनाओं, सामाजिक असमानता तथा पूर्वाग्रहों को दर्शाती है। लेकिन विषय की पुनरावृति मुझे बार बार अखरती रही। बदलाव शीर्षक से दो लघुकथाएं संग्रह में है। शीर्षक में समानता पाठकों में असमंजस की स्तिथि उत्पन्न करता है। संभवत लेखक का ध्यान इस और नहीं गया।  संभवत इन्हे बदलाव एक और दो शीर्षक देते तो अच्छा रहता। 
लघुकथाओं को पढ़ते हुए लगता है ज्यों अनेक घटनाक्रम हमारे बेहद समीप है जिन्हें हमने भोगा है या अपने आस पास घटते देखा है। लेखकों सम्पादकों पर आधारित लघुकथाएं बड़ा लेखक और नवीनीकरण  भी  स्वागत योग्य है अन्यथा इस तरह के विषयों पर कम ही लेखक लिख पाते हैं।  लघुकथाओं के पात्र भी जिज्ञासा पैदा करते है। ग्रामिण परिवेश की लघुकथाओं में पात्र जमनू, रौलू, भागुमल, फुकरुदास, मकरुदास और रामदीन आदि है तो नगरीय परिवेश की लघुकथाओं में सतीश, विनय, निशांत, और शेखर जैसे आधुनिक नाम है जो लघुकथाओं के समय काल और परिवेश से न्याय करते दिखते है और लघुकथाओं के कलेवर को सुन्दरता भी प्रदान करते हैं। पात्रों में बसेडू और शिंगोटे मुझे सत्य पात्र लगते है जिनके माध्यम से लेखक सन्देश देने में सफल हो पाया है संग्रह की नऊआ और कऊआ तथा आत्म बोध लघुकथाएं प्रभावित हो करती है परन्तु ये लघुकथाएं मुझे बोध कथाओं की तरह लगती है। बदलाव लघुकथा आशावादी सन्देश देने वाली लघुकथा है जो उम्मीद जगाती है कि मार्ग से भटके युवाओं को सामूहिक प्रयासों से सही मार्ग पर लाया जा सकता है।
देवता झुठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं लेखक के अंतर्द्वंद्व और सामाजिक पूर्वाग्रहों को व्यक्त करती है। संग्रह में संकलित लघुकथाओं की भाषा सरल और साधारण है जिसे पाठक आसानी से आत्मसात करेगा। लघुकथाओ का केन्द्रीय विषयों का प्रायः मानव जीवन और समाज के नजदीक होना पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करता है। लघुकथाओं का विषय प्राय:  हमारे आसपास का होना संग्रह की सार्थकता में वृद्धि करता है। लेखक किसी दूसरे ग्रह या समाज की बात नहीं करता वो अपने समाज अपने लोगों और अपने जीवन के घटनाक्रम को विषय बनाता है जो लेखक की सामाजिक जुड़ाव और ईमानदारी को दर्शाता है।
संग्रह की लघुकथाएं लम्बे समय तक याद की जाती रहेगी और मील का पत्थर साबित होगी तथा लघुकथा लेखन में स्थान बनाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
'मेरी बात' में लेखक अपनी लघुकथा लेखन यात्रा के माध्यम से सहयात्रीयों, परिवारजनों और सम्पादकों को याद करते हुए कृतज्ञता व्यक्त करता है, जो संग्रह को सुन्दर और उपयोगी बनाता है। लेखक पाठकों  से स्वस्थ और स्वच्छ आलोचना का भी स्वागत करता है जो लेखक की शालीनता और ईमानदारी को दर्शाती है। इसके लिए लेखक साधुवाद का पात्र है।
देवता झूठ नहीं बोलता के लेखक इन लघुकथाओं के माध्यम से संवेदना , व्यवस्था पर आक्रोश, समाज के प्रति उत्तरदायित्व, घटनाओं पर सामायिक नज़र, विषय पूरक समझदारी और ईमानदारी का परिचय भी देते हैं। जिससे लघुकथाएं सुन्दर और प्रभावशाली बन पड़ी है। सभी लघुकथाएँ पठनीय है कुरीतियों पर करारी चोट करती है। हो सकता है सामाजिक पूर्वाग्रहों के चलते कुछ पाठक इन लघुकथाओं पर विपरीत दृष्टि- कोण भी अपनाएं परन्तु देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं चरित्र पतन सामाजिक मूल्यों, धार्मिक विश्वास, ग्रामिण और नगरीय जीवन और दायित्व बोध का प्रतिनिधित्व करती है।
Youtube के लिए 40 ऐपिसोड रिकार्ड करते हुए देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं अनेक विचारणीय प्रश्न  सामने लाती रही और  अनेक जिज्ञासा पैदा करती रही है।  यह प्रश्न और जिज्ञासाए तो ज्यों की त्यों बनी रहेगी। लेकिन यक्ष प्रश्न तो एक ही है जो जस का तस है, क्या 'देवता झूठ नहीं बोलता' ? 

                                                      * रौशन जसवाल
20 अक्तूबर 2023
11:33 रात्रि

(पाठक देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाओ  को मेरे यूट्यूब चैनल @RoshanJaswalVikshipt और Manoj Chauhan जी के फेसबुक वॉल पर सुन सकते है। )

HIMPRASTH  JANUARY 2024


गुरुवार, अक्तूबर 12, 2023

मजमा

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 सुना है शहर में फिर मज़मा लगने वाला है। हर साल की तरह सुदूर देश से आयेंगे व्यापारी  देंगे प्रलोभन और ठगेगे पहाड़ को। पहाड़ रोज ठगा जाता है और खामोश रहता है। 

वो जो बड़ा चौगांन है शहर के बीच वहाँ भी सजती है व्यजनों की अनेक दुकाने। पहाड़ ने देखा था मज़मा के दौरान  वहाँ गंदगी का ढेर और परोसते  दूषित व्यजन और बीमार होता पहाड़। 

बच्चे तो बाल हठ करेंगे ही और खा लेंगे उन्ही पंडालों से अनाप शनाप। 


पहाड़ को सब सहना होगा चुपचाप और शहर मस्त हो देखेगा मज़मा.......

वक्त

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 ये वक्त है

गुजर ही जायेगा

अभी बुरा है

तो 

अच्छा भी आयेगा, 

वक्त है

गुजरना जिसकी फितरत है

गुजर ही जायेगा।

 
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